Tuesday, 7th July 2020
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नई दिल्ली: बिहार में कोरोना वायरस के कारण बंद हुए स्कूलों के बच्चों को मध्याह्न भोजन का लाभ नहीं देने की खबरों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने नाराजगी जताई है। इस योजना का लाभ नहीं मिलने के कारण, बच्चों को कबाड़ खाने और भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा है। आयोग ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) और बिहार सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है।
सोमवार को इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया कि राज्य के भागलपुर जिले में स्कूली बच्चे भीख मांगने से लेकर कूड़ा उठाने तक का काम अपने लिए कर रहे हैं। यह मामला जिले के बड़बिल गांव के मुसहरी टोला का है।
मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी अपने आदेश में कहा गया है कि समाचार रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के स्कूली बच्चों को मध्यान्ह भोजन में दाल, चावल और दाल, सब्जियाँ और अंडे दिए जाते थे, लेकिन इसे फिलहाल बंद कर दिया गया है। इसके कारण गरीब परिवारों से आने वाले बच्चे अब कूड़ा बीन रहे हैं, भीख मांग रहे हैं या फिर ठेकेदारों के पास काम करने लगे हैं। उन्होंने कहा कि बच्चे अब कुपोषण से भी शिकार हो रहे हैं। आयोग ने कहा कि सरकारी स्कूली बच्चों को मिड-डे मील के तहत भोजन देना उनके शिक्षा और भोजन के अधिकार से जुड़ा मामला है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (ए) के तहत शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।
आयोग ने एक बयान में कहा, "पूरे देश में लॉकडाउन के दौरान स्कूल नहीं खुल रहे हैं और मध्याह्न का भोजन बंद कर दिया गया है, जिसके कारण गरीब बच्चों को छोटा-मोटा का काम करना पड़ता है। इससे न केवल उनका स्वास्थ्य बिगड़ता है, बल्कि वे छोटे-मोटे अपराधों एवं अन्य असामाजिक गतिविधियों में पहुंच जाते हैं।। '
उन्होंने कहा कि इस स्थिति में नशीली दवाओं की लत और अनैतिक गतिविधियों में लगे समाज के आपराधिक तत्वों द्वारा बच्चों की तस्करी की आशंका होगी।
आयोग ने एक बयान में कहा कि इसके मद्देनजर, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और बिहार सरकार के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के सचिव को नोटिस जारी किया है और उनसे चार सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
यह मामला सामने आने के बाद बिहार सरकार ने एक आदेश जारी किया है कि मध्यान्ह भोजन योजना के तहत मई से जुलाई तक बच्चों को राशन और पैसा दिया जाए।
बीते छह जुलाई को बिहार में मिड-डे मील योजना के निदेशक द्वारा जारी आदेश में कहा गया, ‘सभी जिला पदाधिकारी को निदेशित किया गया है कि कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए विद्यालय बंदी तथा ग्रीष्मावकाश में मध्याह्न भोजन के अंतर्गत मई, जून एवं जुलाई 2020 के लिए वर्ग एक से पांच तक प्रति छात्र को आठ किलो खाद्यान्न और 358 रुपये एवं वर्ग छह से आठ तक प्रति छात्र को 12 किलो खाद्यान्न तथा 536 रुपये तत्काल दिया जाए।'
राज्य सरकार ने यह भी बताया कि पूर्व में कोरोना के कारण विद्यालय बंदी के दौरान 14/03/2020 से 03/05/2020 तक खाद्यान्न मद के एवज में 378.70 करोड़ रुपये की राशि बिहार के सभी सरकारी/अर्धसरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों के सभी नामांकित छात्रों या उनके अभिभावक के खाते में डाले गए हैं।
यह ज्ञात है कि कोरोना वायरस के कारण लागू किए गए लॉकडाउन की शुरुआत में, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को मिड-डे मील योजना के तहत स्कूल बंद करने के दौरान भी बच्चों को खाद्य सुरक्षा भत्ता (एफएसए) प्रदान करने के निर्देश जारी किए थे। जिसमें खाद्यान्न और खाना पकाने के मूल्य शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए मार्च में कहा कि इस तरह की योजनाओं को इस महामारी के बीच में नहीं रोका जा सकता है।